International Journal on Science and Technology

E-ISSN: 2229-7677     Impact Factor: 9.88

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प्राचीन तथा वर्तमान भारतीय न्याय व्यवस्था में न्यायिक पीठ की भूमिका का तुलनात्मक विवेचन

Author(s) Dr Rajendra Prasad Agarwal
Country India
Abstract सारांश-न्यायालय एवं न्यायिक पीठ स्थापित कर “न्याय” प्रदत्त करना शासन का एक महत्त्वपूर्व दायित्व है। न्याय तंत्र में न्यायिक पीठ की संरचना एवं स्वरुप का समाज पर प्रत्यक्ष एवं दूरगामी प्रभाव पड़ता है। सुलभ न्याय एवं न्यायाधीश हेतु विहित विधि-निषेध का अनुपालन सामाजिक स्थायित्व एवं राज्य की आर्थिक समृद्धि में झलकता है। इस आलेख में न्याय निर्णयन में तत्परता, निष्पक्षता, पारदर्शिता एवं जनविश्वास के अध्ययन हेतु ऐतिहासिक ग्रंथों, विभिन्न स्मृतियों, आचार्यों एवं व्यवस्थाकारों के भाष्य तथा वर्तमान न्याय विधानों और समकालीन घटनाओं की तुलना कर निष्कर्ष निकाले गए हैं। प्राचीन भारत के सोपानीकृत न्यायालय ढांचे में सीमित न्यायिक संस्थाओं के साथ बहुसदस्यीय न्यायकर्ताओं की उपस्थिति से समाज में सकारात्मक बदलाव देखे गए। प्राचीन न्यायिक तंत्र में सत्ता के नियंत्रण के बावजूद निर्णयन कार्य शासन के दखल से स्वतंत्र था। हिन्दू विधानों के विपरीत ब्रिटिश न्याय व्यवस्था पर आधृत वर्तमान न्यायिक प्रणाली से न्याय लम्बा, मंहगा तथा जटिल हुआ है, गुणवत्ता के ह्रास के साथ मुकदमों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। प्रस्तुत शोधपत्र हिन्दू न्यायिक व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में यह जानने का प्रयास है कि वर्तमान न्याय प्रणाली लोक समाज की अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरी है। इस शोध कार्य में अतीत की न्याय व्यवस्था के सकारात्मक पहलूओं का समावेशन कर विद्यमान चुनौतियों से निपटने एवं बेहतर न्याय व्यवस्था हेतु समाधान तलाशे गए हैं।
Keywords न्यायपालिका, पंच परमेश्वर, ईज ऑफ़ जस्टिस, मत्स्य न्याय, गूढ़ाजीव, कोलेजियम।
Field Sociology > Administration / Law / Management
Published In Volume 16, Issue 2, April-June 2025
Published On 2025-05-10
DOI https://doi.org/10.71097/IJSAT.v16.i2.4800
Short DOI https://doi.org/g9kc7f

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