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E-ISSN: 2229-7677
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Volume 16 Issue 4
October-December 2025
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हिन्दी आलोचना का अध्ययन (१९८० से २०१० तक)
| Author(s) | डॉ. विजय लक्ष्मी शर्मा |
|---|---|
| Country | India |
| Abstract | हिन्दी साहित्य में पत्र-पत्रिकाओं के विकास के साथ ही नई विधाओं का उदय हुआ। धीरे-धीरे कविता, कहानी, आलोचना में नवीन प्रयोग शुरू हुए। इसके साथ ही साहित्य में आलोचना की विश्वसनीयता पर अनेक सवाल खड़े हो रहे थे। ऐसे समय में आलोचना पर केंद्रित पत्रिका निकालना उससे भी जोखिम भरा कार्य था।उपनिवेशवाद की परिघटना का प्रभाव वैश्विक था, इसलिए इसकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न होने वाला विमर्श भी अपने प्रभाव में वैश्विक होगा- केवल भौगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि विभिन्न ज्ञानानुशासनों केपरिक्षेत्र की दृष्टि से भी। आलोचना साहित्य की कसौटी है, जो उसकी गुणवत्ता, मूल्य, मानवीय संवेदना और समाज कल्याण में उसके योगदान को निर्धारित करती है। हिंदी साहित्य में आलोचना की परंपरा रीति काल में शुरू हुई। केशवदास, चिंतामणि, भिखारीदास और नाभादास से होते हुए यह परंपरा आधुनिक हिंदी साहित्य में और अधिक परिष्कृत हुई। भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी और आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे अग्रदूत हिंदी आलोचना के विकास और विस्तार में आधार स्तंभ के रूप में खड़े हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रारंभिक चरण में, भारतेंदु एक सशक्त और तीक्ष्ण आलोचक, विचारक और संपादक के रूप में उभरे। |
| Keywords | हिन्दी आलोचना, अध्ययन, हिन्दी साहित्य, रीति काल, सम्यक निरीक्षण, समीक्षा, द्विवेदी युग पुस्तकों |
| Published In | Volume 8, Issue 4, October-December 2017 |
| Published On | 2017-10-13 |
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