International Journal on Science and Technology

E-ISSN: 2229-7677     Impact Factor: 9.88

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Call for Paper Volume 16 Issue 4 October-December 2025 Submit your research before last 3 days of December to publish your research paper in the issue of October-December.

हिंदी नाटक एवं रंगमंच का बदलता स्वरूप

Author(s) Dr Shyam singh
Country India
Abstract नाटक साहित्यिक अभिव्यक्ति की ऐसी विधा है जो केवल साहित्य नहीं, उससे अधिक कुछ और भी है, क्योंकि रचना की प्रक्रिया लेखक द्वारा लिखे जाने पर ही समाप्त नहीं होती, उसका पूर्ण प्रस्फुटन और संप्रेषण रंगमंच पर जाकर ही होता है। रंगमंच पर अभिनेताओं द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के बिना नाटक को सम्पूर्णता प्राप्त नहीं होती और इसलिए रंगमंच से अलग करके नाटक का मूल्यांकन या उसके विविध अंगो और पक्षों पर विचार अपूर्ण ही नहीं, भ्रामक हो जाता है। डॉ नरेन्द्र मोहन के अनुसार “हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। 1950 से पहले के हिन्दी नाटक को देखें तो यह कहा जा सकता है कि भारतेन्दु और जयशंकर प्रसाद को छोड़कर कोई भी महत्त्वपूर्ण नाटककार नहीं हुआ। ठीक यही बात 50 के बाद के नाटक के बारे में नहीं कही जा सकती। आज़ादी से पहले और अज़ादी के लगभग दस साल बाद तक हिन्दी रंगमंच के नाम पर पारसी थियेटर ही छाया रहा। आगा हश्र कश्मीरी के नाटक हों या फिर पृथ्वीराज कपूर के, इनके केन्द्र में पारसी रंग शैली ही काम कर रही थी।
Field Arts
Published In Volume 16, Issue 4, October-December 2025
Published On 2025-10-21
DOI https://doi.org/10.71097/IJSAT.v16.i4.8953
Short DOI https://doi.org/g97s75

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